स्कूल की ओ लडकी
Ch 1 - स्कूल की लड़की
भाग 1(दाखिला)
जैसा कि सबको पता है हम सबके जिंदगी का सबसे खूबसूरत दौर बचपन होता है जब हम न तो ज्यादा समझदार होते हैं न तो ज्यादा अनुभवी लेकिन उस समय हम अपने आप को किसी बहुत बड़े विद्वान से कम नहीं मानते । हम समझते हैं कि जो हमारे पास अनुभव है वो पर्याप्त है उसके कई कारण हैं हम उस समय जिन परिस्थितियों में रहते हैं ओ हमारी एक अलग दुनिया होती है हमारी उस समय कि दुनिया में हर चीज सम्भव होती है चाहे ओ परीकथा हो अथवा कोई कामिक्स कैरेक्टर या फिर कोई सूपर हीरो हम उसी दुनिया में जीते हैं क्योंकि उस समय हमारी समझ हर चीज को सम्भव मानती है हमारा जीवन खेलने से लेकर स्कूल और घर तक सीमित रहता है इसलिए हमें न तो बाहरी दुनिया की खबर होती है न ही समझ खैर मैं जो कहानी सुनाने वाला हूं ये हमारे बचपन के उस उम्र की है जिस उम्र में न तो हम बहुत समझदार और न ही बहुत भोले रहते हैं क्योंकि हमारी समझ यहीं तक सीमित रहती है।
आप सोचिए यदि आप को ऐसे माहौल में भेज दिया जाय जहां आप कुछ न समझते हों तो आपको लगेगा की आप मूर्ख हैं लेकिन जैसे आप हो वैसे ही वहां के सभी लोग हों तो कैसा रहेगा यही मारे बचपन की हालात रहती थी वैसे भी चाहे जो कहें हमारा बचपन ही पूरे उम्र का वो हिस्सा होता है जो कि सबसे अलग सबसे अनोखा और सबसे आनंददायक होता है हम बचपन में जो भी मस्तियां शैतानियां करते हैं ओ जीवन भर नहीं भूलता साथ ही हमारे बचपन के ओ सारे खेल शरारतें और न समझ होते हुये जो हम बचपन में ज्ञानियों वाला वक्तव्य देते थे ओ हम जिंदगी के अंतिम पलों तक हंसाता रहता है शायद यही कारण है कि हम अपने जिंदगी का एक अहम हिस्सा बचपन को ही मानते हैं और जिंदगी के किसी और पड़ाव के दोस्तों के नाम शायद हम भूल भी जायें लेकिन अपने बचपन के दोस्तों को हम कभी नहीं भूलते
ये जो कहानी है ये स्कूल के समय की है जब हम नर्सरी की कक्षाओं को समाप्त करके कक्षा एक या दो को पूरा करते हुये ऊपर की कक्षाओं में प्रवेश लेते हैं और हमारी कहानी भी यहीं से शुरू होती है-----
जिंदगी के कई ऐसे पल होते हैं जो हम कभी नहीं भूलते ,चाहे ओ अपने कितने बड़े प्रतिद्वंद्वी क्यों न रहे हों ।
जब हम उस उम्र की दहलीज को पार करके आगे निकल जाते हैं तो वो हमारे मन में एक तस्वीर की तरह बस जाते हैं और जब उम्र के किसी पड़ाव में मिलते हैं तो इतने हर्ष के साथ मिलते हैं कि मानो कितने बड़े मित्र रह चुके हैं, तब उस समय की लड़ाइया भी हमें मीठे आनंद का अनुभव कराती हैं क्योंकि हम जब बड़े होते हैं तो बड़े होने के साथ हमारे बुद्धि का विकास होता है हमें अच्छे बुरे की समझ हो जाती है तब वहीं बचपन की लड़ाइयां हमें एक छोटी सी नादानी लगती है और तब हमारे ब?
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HARSHADA GOSAVI
03-Jul-2023 03:29 PM
best
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madhura
27-May-2023 11:24 AM
nice
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Inayat
20-Feb-2023 06:58 PM
ये भाग शायद अधूरा है
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